टटूटता जा रहा हूं मै खंड खंड।
पूर्णिमा की अर्ध रात्रि, हड्डियों को गलाती ठंड
चांद की हलकी सी बारिश में ओढ़े दुशाले,
टूटता जा रहा हूं मै खंड खंड।
ग़ज़लों का तरननुम है हल्का हल्का,
हवाओं में महकने लगी है तुम्हारी ही गंध।
कशमोकस है की तुमसे कहूं कि नहीं,
ना की दलील है तुम्हे खबर तो है कदर...
चांद की हलकी सी बारिश में ओढ़े दुशाले,
टूटता जा रहा हूं मै खंड खंड।
ग़ज़लों का तरननुम है हल्का हल्का,
हवाओं में महकने लगी है तुम्हारी ही गंध।
कशमोकस है की तुमसे कहूं कि नहीं,
ना की दलील है तुम्हे खबर तो है कदर...