पढ़ता रहा
कभी निगाहें तेरी कभी रुखसार पढ़ता रहा
मैं धूप बन जर्द बदन की बहार पढ़ता रहा
दो झीलें तेरी आंखों में लहरा के सो गईं
मेरा दिल तेरी हसरतों का अखबार पढ़ता रहा
मेरी सांसों में घुली हुई है तेरी खुशबू...
मैं धूप बन जर्द बदन की बहार पढ़ता रहा
दो झीलें तेरी आंखों में लहरा के सो गईं
मेरा दिल तेरी हसरतों का अखबार पढ़ता रहा
मेरी सांसों में घुली हुई है तेरी खुशबू...