...

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ज़िंदगी
ऐ जिंदगी इतने दर्द भी ना दें ,कि दवा और दुआ भी ना लगे।... खफा तू है और रूठा रूठा पूरा जहां लगता है.. जैसे जख्म पर गहरा घाव लगता है... बहुत मंजर मैंने देखे हैं इस छोटी सी उम्र में.. अब कुछ और देखने का शौक नहीं... हंसने पर भी रोना सा लगता है
खामोशियां भी करती है अब मुझसे बातें मुझ पर वह भी हंसने लगी है ... ए जिंदगी इतनी दर्द भी ना दे..दूर हो रही हूं अपनों से अंधेरों में में खोते जा रहे हैं सपने मेरे ..अकेलेपन की इस जिंदगी से हम गुम होते जा रहे हैं ... ऐजिंदगी इतनी दर्द भी ना दे की दवा और दुआ भी ना लगे...