...

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होगा
मैं आतिश हूं मुझे जलना होगा,
खाक तक का सफर चलना होगा।

मसलेहत में सिर्फ मैं ही क्यों मरु,
मोहब्बत तुझे भी अब मरना होगा।

शब-ए-आरज़ू का वस्ल हुआ जो,
दिन-ए-तलब मे गुज़रना होगा।

मसले गिनाते फिरते है सब,
कौन बताए करना क्या होगा।

सब मोजज़े में डूबे मिलेंगे,
महफ़िलो मे हमें हंसाना होगा।

हौसलों की उड़ान कैसे भरुं,
हिज्र का बोज हटाना होगा।

मुझसे नज़रें जो चुरा लिए वो,
ता-उम्र ये रिश्ता निभाना होगा।

बेफिक्री से क्यों टकरा जाए हम,
गणे मुर्दो से क्या बुलवाना होगा।

मुझे जो समझ ना पाए अक्सर,
क्यूं उन्हें मुझे कुछ समझाना होगा।

मौत अगर हक़ीक़त है तो,
'आहिल' सब को ही जीना होगा।

© आहिल-ए-दास्तान