...

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तड़पन
वादा था तुम्हारा तो आज आने का,
अपने हाथों अपना मेरा व्रत खुलवाने का।

चाँद निकल आया मगर तुम नहीं आये,
तुम्हारी राह ताकते मेरे नैन पथराये।

वादा था तुम्हारा तो आज आने का,
अपने हाथों मेरा व्रत खुलवाने का।

तुम खुद चाँद हो गये,
अब तुम्हें कैसे पायें?
कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं,
मगर अब कैसे सुनायें?

लगता है किसी की उम्मीद में रहने की पीड़ा तुम नहीं समझते हो,
तभी तो हमसे दूर रहकर यों तड़पाते हो।

तुम्हारे संग मिलती है
चंदा की चांदनी सी शीतलता।
तुमसे दूर रहकर रहती है,
जल बिन मछली सी व्याकुलता।

प्रिय अब और न तडपाओ,
आकर मेरे दिल की प्यास बुझाओ।



© Suraj Sharma'Master ji'