...

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मैंने देखा है हर पहर को...
सुबह की भोर को,
चिड़ियों के शोर को,
दिन की दोपहर को,
हर गली, हर शहर को,
मैंने देखा है हर पहर को।।

आसमां के कहर को,
घर के कलह को,
टूटती उम्मीदें, बुनते सपनों को,
निर्धन की कुटिया और धनी के महल को,
मैंने देखा है ऊंच नीच के उस भंवर को।।

मोह-माया में लिप्त मानव को,
ईर्ष्या व घृणा से युक्त मानव को
बिन मौसम पतझड़ में...