...

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बचपन के खेल
खेल खेलते न जाने कब बचपन गुजर गया
मैं खङा रहा यहीं वो जाने किधर गया,

खेलते थे मिल सारे खेल यहीं पर
बनें चोर सिपाही या बनती रेल यहीं पर,

कभी मिल बैठ अटकन चटकन खेलते
तो कभी सितोलिया की मार भी झेलते,

छुप जाते कि कोई ढूंढ़ न पाए
कौन है कहां कोई बूझ न...