स्टेशन
कभी सन्नाटा ,कभी शोरगुल ,
कभी खड़खड़ाहट से कान गुल,
रात पहुंच भी आंख जाये खुल ,
हो जाये कभी स्थान सारा फुल
उतरे- चढ़े, एक से दूजे पुल।
दिवामध्य बैठ ,देखे सब छुप
ताके सबको होकर स्वयं...
कभी खड़खड़ाहट से कान गुल,
रात पहुंच भी आंख जाये खुल ,
हो जाये कभी स्थान सारा फुल
उतरे- चढ़े, एक से दूजे पुल।
दिवामध्य बैठ ,देखे सब छुप
ताके सबको होकर स्वयं...