संवारने
हम भी चले थे उनके बिना ज़िंदगी
संवारने पर कमबख्त ने
नज़रें क्या मिलाई सारा सजना रह गया
अब तो बस यही ख्वाहिश है
दिल -दिमाग में की काश मिल
जाए दुबारा उन्हीं रास्तों पर
तो शायद यादों को याद न करना पड़े
उनकी निगाहें समझाना तो बहुत कुछ चाहती थी
पर हम नासमझ बन कर बस चुप हो गए
उनके बिना हर महफ़िल खाली लगती है
हर दिन अंधेरा लगता है
अब यही गिला है मन में की
हम भी कभी चले थे उनके बिना ज़िंदगी संवारने...
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संवारने पर कमबख्त ने
नज़रें क्या मिलाई सारा सजना रह गया
अब तो बस यही ख्वाहिश है
दिल -दिमाग में की काश मिल
जाए दुबारा उन्हीं रास्तों पर
तो शायद यादों को याद न करना पड़े
उनकी निगाहें समझाना तो बहुत कुछ चाहती थी
पर हम नासमझ बन कर बस चुप हो गए
उनके बिना हर महफ़िल खाली लगती है
हर दिन अंधेरा लगता है
अब यही गिला है मन में की
हम भी कभी चले थे उनके बिना ज़िंदगी संवारने...
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