...

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मैं ना जानू भईया ई देश प्रेम का ह
अब ख़त्म हो रहा है,
धीरे धीरे,
आहिस्ता आहिस्ता,
हौले हौले,
हम का अस्तित्व,
हां,
हम,
वही हम,
जो एकता का प्रतीक है,
जहां बाहें फैला के,
प्रेमियों का आगाज कम,
और गोलियां ज्यादे खाई गई है,
पर,
अब रिवाज बदल रहा है,
नहीं,
बदल ही गया है,
सब सिमट सा गया है,
इस आधुनिकता के दौर में,
सब में से,
कुछ न कुछ,
खा गया है,
ये औद्योगिकरण,
और,
साथ ही,
खत्म...