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" बचपन की वो सुनहरी यादें"
" बचपन"
बचपन, यह वह सुनहरा पल है जब हम मां के हाथ से खाते थे और बिना किसी टेंशन के सो जाते थे ,
बचपन में जब हमें कोई जरा भी डांट देता था तो हम बहुत रोते थे,
कुछ बचकाने बच्चे किसानो को खेत बोते देख कर सिक्के भी बो देते थे |
जब बचपन मे खाना नहीं खाते थे तो मां हमारे पीछे दौड़ कर खिलाती थी और शाम को सोते वक्त दूध भी पिलाती थी ,
जब हमें नींद नहीं आती थी तो मां अपनी गोद में सुला कर लोरी भी सुनाती थी |
क्यों बीत गया बचपन क्यों चले गए वो पल, सपने में यही सोचता हूं मैं आजकल |
बचपन जो बीता आई जवानी टूट गए सपने, कुछ पीछे छूट गए जिन्हें हम कहते थे अपने, बचपन की कुछ यादें हैं मुझे आज भी हंसाती है,
स्कूल में की हुई शरारतें आज भी याद आती है|
हे बचपन लोट आ तू वापिस तुझे रब दा वास्ता,
मैं आज भी देखता हूं बचपन के उन दोस्तों का रास्ता|
बचपन, यह वह सुनहरा पल है जब हम मां के हाथ से खाते थे और बिना किसी टेंशन के सो जाते थे ,
बचपन में जब हमें कोई जरा भी डांट देता था तो हम बहुत रोते थे,
कुछ बचकाने बच्चे किसानो को खेत बोते देख कर सिक्के भी बो देते थे |
जब बचपन मे खाना नहीं खाते थे तो मां हमारे पीछे दौड़ कर खिलाती थी और शाम को सोते वक्त दूध भी पिलाती थी ,
जब हमें नींद नहीं आती थी तो मां अपनी गोद में सुला कर लोरी भी सुनाती थी |
क्यों बीत गया बचपन क्यों चले गए वो पल, सपने में यही सोचता हूं मैं आजकल |
बचपन जो बीता आई जवानी टूट गए सपने, कुछ पीछे छूट गए जिन्हें हम कहते थे अपने, बचपन की कुछ यादें हैं मुझे आज भी हंसाती है,
स्कूल में की हुई शरारतें आज भी याद आती है|
हे बचपन लोट आ तू वापिस तुझे रब दा वास्ता,
मैं आज भी देखता हूं बचपन के उन दोस्तों का रास्ता|
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