...

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वो.....
कच्ची दीवार से टेक लगाए
एकतरफा गुफ्तगू में
धधका हुआ एक शोला है वो

भस्म हो कि दफ़न हो
बेफ़िक्र रात दिन के मसले से
काग़ज़ के टुकड़े सा उजला है वो

भयंकर अंदरूनी जंग में सिमटा हुआ
काल के काले घर में
पिटता हुआ एक मोहरा है वो

गर्दिश में अटका कर पाँव
वक़्त की तारीखों में उड़ता हुआ
जलजले का गोला निगला हुआ है वो.......!!




© bindu