...

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पैग़ाम मोहब्बत का
नहीं मालूम था क्या होगा अंज़ाम मोहब्बत का
जब लेकर आया था तु दिल में पैग़ाम मोहब्बत का,

बढ़ने लगे थे ये कदम तेरी ओर तभी
छूकर गुज़रे थे जब तेरे एहसास मुझे उस घड़ी,

यूँ अजनबी से तुम हमारी जान बन गए
इस दिल के हमारे खरीदार बन गए,

ये फ़िज़ाएं भी अब इतराने लगी हैं
बिखेर कर ज़ुल्फे मेरी मुझे सताने लगी हैं,

ख्यालों में तेरे हम खोने लगे हैं
ख़ुद से भी अजनबी अब होने लगे हैं,

हुआ क्या असर है तेरे साथ रहकर न जाने
की हम अब दीवाने होने लगे हैं!!

© K. Ansari