Nakaab
काबिल-ए-मुहोब्बत जो दिल हैं
कहीं खामोश सर झुकाये खड़े हैं,
कपट के कलाकार क़ातिल
बड़ी लम्बी कतार लगा कर खड़े है।
इज़हार-ए-मुहोब्बत के जो लब्ज़ हैं
शक के कटघरे में शर्मिंदा खड़े हैं,
किसी कांपते होंठ ने सच कहा पर
पास उनके तो बेहतरीन झूठ खड़े हैं।
कहीं खामोश सर झुकाये खड़े हैं,
कपट के कलाकार क़ातिल
बड़ी लम्बी कतार लगा कर खड़े है।
इज़हार-ए-मुहोब्बत के जो लब्ज़ हैं
शक के कटघरे में शर्मिंदा खड़े हैं,
किसी कांपते होंठ ने सच कहा पर
पास उनके तो बेहतरीन झूठ खड़े हैं।