...

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सत्य
अनगिनत घाव खा चुका हूं
सत्य के पथ पर चल के
झूठ करता रहा प्रयास
कुचलने के बहुत मुझे

फूल भले तुम चुग लेना
मार्ग के मेरे सारे
कांटे जो चुभते पैरों में
लगते मुझको वो भी प्यारे

भीड़ भले ही तेरे पास हो
झूठ भले ही विशाल हो
सत्य किंचित न मुरझाएगा
हर वार से और तन जाएगा।
© Abhinav Anand