...

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ज़िंदगी और मैं
यूँ तो नहीं है तजुर्बा अधिक मगर,
जितनी बीती है, वो लाजवाब है,
ज़िंदगी का पल पल काटा या गुज़रा,
हर शय में मजा इसका बेहिसाब है,
समझ ना आई बात मुझे, कोई समझाए,
ज़िंदगी को जी मैंने, या जिया इसने है,
ज़ख़्म मिले हैं मुझे या, दिया इसने है,
उत्साह मनाऊँ सांसों का, या रोऊँ,
हताशा ली मैंने ही या किया सितम इसने है,
चेहरे तमाम, रिश्ते अनगिनत पर साथ नहीं,
ज़ुबां कितने, शब्द ढेरों पर कोई बात नहीं,
सलाह एक से बढ़कर एक मगर,
क़दम वो ही पीछे खींच लेते हैं मेरे,
देते हैं बेशक उम्मीद कहीं ना कहीं,
पर आने ना देते हैं जीवन में सवेरे,
नज़रें घुमा जो देखा चारों ओर है मतलबी,
मेरे हालातों का जायजा ले बस स्वाद चखी,
हाँ हूँ अलग मैं, कड़वी बोली लबों पर,
पर कोई बताए, क्या झूठ से नहीं है ये बेहतर,
क्यों फिर हर शख़्स मुझे अपने नजरिए पर तोले है,
दंभी घमंडी अभिमानी बस यही बात बोले हैं😔
© khwab