...

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प्रेम...
मेरी स्मृति से परे था वो एक क्षण...
प्रफुल्लित हों गया था मन का कण - कण।।

मेरे जीवन की नैया अब खेने लगी थी ,
मेरी प्रसन्नता भी कुछ कहने लगी थी।।

उत्तर नहीं था आपके उस प्रसन्न का मुझपर ,
पर अंतरात्मा बस हाँ कहने लगी थी।।

ना था बोध भविष्य की प्रसन्नताओ का...
ना वर्तमान का भय था...

आपके साथ जीवन की हर कल्पना सुखद थी....
ना जानती थी मैं मेरी वो कल्पना ही प्रेम थी।।

मीलों का वो अंतराल भी अद्भुत है...
एक साल बाद भी ये स्थित है।।

ये अंतराल भी खत्म होगा कभी ,
शायद हम मिले तभी...

पर प्रेम में बदलाव होगा नहीं...
चाहे वर्ष बीतें या बीत जाए आयु का कण - कण...
एक साल पहले आया था वो क्षण...

मेरा मुरझाया जीवन खिल आया था...
मेरे अश्रुओं ने भी मुझे हसाया था।।

आप आये मेरे जीवन में जो...
मेरा जीवन कहलाया था।।

© श्वेता श्रीवास