प्रेम...
मेरी स्मृति से परे था वो एक क्षण...
प्रफुल्लित हों गया था मन का कण - कण।।
मेरे जीवन की नैया अब खेने लगी थी ,
मेरी प्रसन्नता भी कुछ कहने लगी थी।।
उत्तर नहीं था आपके उस प्रसन्न का मुझपर ,
पर अंतरात्मा बस हाँ कहने लगी थी।।
ना था बोध भविष्य की प्रसन्नताओ का...
ना वर्तमान का भय था...
...
प्रफुल्लित हों गया था मन का कण - कण।।
मेरे जीवन की नैया अब खेने लगी थी ,
मेरी प्रसन्नता भी कुछ कहने लगी थी।।
उत्तर नहीं था आपके उस प्रसन्न का मुझपर ,
पर अंतरात्मा बस हाँ कहने लगी थी।।
ना था बोध भविष्य की प्रसन्नताओ का...
ना वर्तमान का भय था...
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