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युद्ध काव्य
नवोदय के अभिलाषी नर है
रण में तो अब बस शर वृंद दिखेंगे
काल की कपाल पट्टिका पर
सुभट भैरव छंद लिखेंगे

पौरूष की प्रत्यंचा पर
संधान होगा तरुणाई का
शोणित के कण-कण से
भान होगा अरुणाई का

छिन्न-भिन्न होंगें देह
और पग पग पर मुंड मिलेंगे
रण ही यज्ञ है क्षात्र धर्म का
यहाँ कण कण में कुंड मिलेंगे