...

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"लाज और आंच"

मचा दिल में एक तूफ़ान है,
चारों तरफ़ फ़ैला कोहराम है।
हया बिक चुकी है प्यार के नाम पर,
न रहा एतबार खुद का यहां खुद पर।
हो नवजात बच्ची,लड़की या नारी,
होती लज्जित और असुरक्षित सारी।
जिसकी कोख से है जन्म लिया,
आती न शर्म उसको दुःख दिया।
क्या है राक्षस इस जग में सारे,
नहीं है लाज की, किसी की इज्ज़त न उतारे।
बेच खा गए है लगता अपने जज़्बात वो,
तभी न समझते किसी की तकलीफ को।
होती इज्ज़त सबको प्यारी ,
बेटी,बहन हो किसी की या तुम्हारी।
थोड़ी सी शर्म अगर आ जाए इनके आंखों में,
तो हर अबला हो सुरक्षित भारत देश में ।