विसर्जन
मूर्ति विसर्जित हो चुकीं,
दर्शकों की भीड़ घरों को लौट गई है।
सारे पांडाल सूने पड़े हैं,
ढेरों नारियल टूटे पड़े हैं।
ढोलकी की ताल ख़ामोश,
सन्नाटे बेख़ौफ़ पसर गए हैं।
छा गई है साँझ की बेला,
वो हाथ जोड़ खड़ा अकेला।
...
दर्शकों की भीड़ घरों को लौट गई है।
सारे पांडाल सूने पड़े हैं,
ढेरों नारियल टूटे पड़े हैं।
ढोलकी की ताल ख़ामोश,
सन्नाटे बेख़ौफ़ पसर गए हैं।
छा गई है साँझ की बेला,
वो हाथ जोड़ खड़ा अकेला।
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