...

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गजल बनके आ गये
जिन्दगी के कुछ हसीन पल बनके आ गये,
तुम मेरे होंठो पर गजल बनके आ गये।।

मैं तो खंडहर हो गया था जमाने के लिए,
तुम मेरी बाहों में ताजमहल बनके आ गये।।

कट रहा था सफर मेरा धूप में चलते-चलते,
तुम मेरी राहों में भीगे बादल बनके आ गये।।

भूल चुका था मैं शायद इश्क़ के एहसासों को,
तुम मेरी दहलीज पर बीता कल बनके आ गये।।

टूटे छत से बरस रही थी बूंदे कुछ तन्हाई की,
तुम मेरी सर्द रातों में महल बनके आ गये।।

मै भटक रहा था प्यासा रेगिस्तान में अकेला,
तुम हाथों में मेरे गंगा जल बनके आ गये।।

कई सवाल उठ खडे थे उसके जाने के बाद,
तुम सारे उन सवालों का हल बनके आ गये।।

एक तस्वीर बनायी थी मैंने अपने हमसफर की,
तुम उस तस्वीर की हुबहू नकल बनके आ गये।।
© Er. Shiv Prakash Tiwari