...

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मेरा सनम
छुप छुप कर तुम्हारी तस्वीर निहार लेती हूं
उन्ही से ही जी भर के बाते कर लेती हूं।

तुम्हारी तस्वीरों को देखना , बाते करना अब मेरी आदतों में शामिल होने लगा है
किसी दिन जब भूल जाऊ देखना तो कुछ अधूरा सा लगने लगता है।

तुम्हारी लिखी गजलों को रोज़ पढ़ती हूं
जाने क्यूं उनमें...