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एक नज़्म
आज विश्व धरोहर दिवस है, अपनी वैश्विक सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को बचाने और संरक्षित रखने का संकल्प लेने का दिन।
इस अवसर के लिये कुछ पंक्तियाँ ~

'क़दीम आसार '

ये जो टूटे दर ओ दीवार दिखें
ईंट और संग के मीनार दिखें
चाहे मंदिर हों कि मस्जिद
या महल के खंडहर
या हजारों बरस
पुरानी बस्तियों के निशां
ज़िन्दगी इनमें कभी बसती थी
इनकी अपनी ही अलग हस्ती थी
ये बताते हैं हमें,हम क्या थे
और कैसे यहां तक आये हैं।
ये फ़क़त कुछ क़दीम आसार नहीं
ये महज़ गुम्बद ओ मीनार नहीं
इनमें सदियों की दास्ताने हैं
इनमें बीते हुए ज़माने हैं
इनमें पुरखों का हुनर शामिल है
उनकी मेहनत है, खूँ पसीना है
इसमें कितना लगा ख़ज़ीना है
समय की मार झेलते आये
कितने आज़ार झेलते आये
बर्क़, अगियार झेलते आये
और अब देखिये किस हाल में आ पहुंचे हैं।
इससे पहले ये निशां मिट जाएं
आओ मिल कर क़दम बढ़ाते हैं
इस विरासत को हम बचाते हैं ।
© इन्दु