...

5 views

गुमां
नाजाने ये ख़्वाब है या हकीकत, नहीं मालूम ये क्या हो रहा है
दर्द दबा था जो सीने में मेरे, कैसे उनके लबों से बयां हो रहा है।

शायद असर है मुहब्बत का ये, या फिर से मुझको गुमां हो रहा है
कमाल मंजर देखता हूँ इश्क़ में, सहरा दिल खिलकर गुलिस्तां हो रहा है।

मिट गईं खामोशियां जो थीं, जो था फासला दरम्यान खो रहा है
पुर कशिश है रुमानी समां, वो मुझ पर मेहरबां हो रहा है।

तर-ब-तर हूँ खुशियों की बौछार में, मुस्कुराते लब ग़म का निशां खो रहा है
दुआ रंग लायी पाकीज़ा एहसास हैं, ये दीदार-ए-यार है या रूबरू ख़ुदा हो रहा है।


© IdioticRhymer