...

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यादों के गुल...
दिल के गुलदान में तुम्हारी यादों के गुल हम रोज़ सजाते हैं,
खंडहर हुई यादें फिर भी यादों के दीए हम रोज़ जलाते हैं।

दिल के दहर में रक़्स करती हैं तेरी यादें दिन- रात,
पलकों पर उन खुशगवार यादों से दिल का गुलशन महकाते हैं।

एक मुद्दत हुई फिर भी हमारे बीच फासले हैं क़ायम,
तेरे तसव्वुर की धूप में आज भी अपना भीगा आँचल सुखाते हैं।

जिंदगी के तालाब में कंकड़ की तरह यादें लहरें उठा जाती हैं,
बहुत चाहा कि भूल जाएं लेकिन बीते लम्हों को भूल नहीं पाते हैं।

मेरे दिल का मर्ज़ भी तुम तो इलाज भी हो तुम ही,
ये सर्द रातें और तेरी यादें दर्द-ए-दिल का मरहम बन जाते हैं।

तुम्हारी यादों के तारों से लिपटे है मेरी ज़िंदगी के सभी तार,
लग कर गले दीवारों से हम अश्कों का सावन बरसाते हैं।

दिल की दीवारों से मिट नहीं सकते नक़्श अपने माज़ी के,
खंडार होती यादों को हम रोज़ समेटकर इमारत नयी बनाते हैं।