ग़ज़ल
रक्खा क्या ही है ऐसे जीने में
आग जब लग रही हो सीने में
जाम भी बिन तेरे लगे फ़ीका
साथ तेरे मज़ा है पीने में
मुझको पत्थर नहीं नगीना कहो
इक अलग बात है नगीने में
दर्द अपना तुम्हें बताऊँ क्या...
आग जब लग रही हो सीने में
जाम भी बिन तेरे लगे फ़ीका
साथ तेरे मज़ा है पीने में
मुझको पत्थर नहीं नगीना कहो
इक अलग बात है नगीने में
दर्द अपना तुम्हें बताऊँ क्या...