...

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सृष्टी की कहानी
छा रहा घनघोर अंधेरा
हर तरफ हर ओर
चहुँ दिशाओं में गूंज रहा
नकारात्मकता का शोर
वातावरण में गर्मी है
व्यवहार में बेशर्मी है
धर्म की बातें करने वाला भी
आज यहाँ अधर्मी है
इन अंखियों में पानी है
पैसों की गड्डी तले दबी जिन्गानी है
नफरत की कलम से
लिखी जा रही इस सृष्टी की कहानी है
टूट गए प्रेम के कच्चे धागे
ईर्ष्या की जंजीरों ने जकड़ा है
अपना लिया सबने हिंसा का मार्ग
क्रोध ने सबको पकड़ा है
हम देशों में बटे
विदेशों में बटे
धर्म, जाति, रंग, रूप और वेशों में बटे
एक बार बटे सौ बार बटे
और बटते ही चले गए
मानवता की माप में
हम घटते ही चले गए
अच्छाई का दीपक जब जगमगाएगा
प्रेम रूपी प्रकाश छा जाएगा
टूट जाएंगी बेड़ियाँ
जुड़ जाएंगे कच्चे धागे
मानव में मानवता होगी
जो भीतर के मानव जागे ||
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