...

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गलतफहमी

हमारी चाहत की गहराई,
वो नाप न सके,
दिल के अहसास ,
वो समझ न सके।
गुफ्तगू हो न सकी जब,
लिया उसने फटाफट फैसला
कह दिया झट से तब,,
तुम बदल गये हो अब,
तब सुनकर सन्न रह गये हम,
बतायी अपनी मजबूरी,
दीदी थीं दो दिन हौस्पिटल में,
इसलिए हुई उत्तर देने में देरी।
उनकी सेवा मेरा प्राथमिक काम,
नहीं तूल दिया उसने मेरे उत्तर को,
और सुना दिया तुगलकी फरमान।
तुम हो आज से अपरिचित,
नहीं करना कोई अब बातचीत,
जान गई मैं तुम्हारा सब चरित्र,
आज यहां,कल वहां,
तुम घूम रहे सारा जहां,
चरित्र पर हमारे हुआ हमला,
धैर्य दे गया जवाब,
आक्रोश में किया हमने भी हमला,
बोले,आगे अब कुछ न कहना।
बेहतर है, तुम हमसे दूर ही रहना।
© mere ehsaas