बंटवारा... किस्सा कुछ हिस्सों का.
बंटवारा... किस्सा कुछ हिस्सों का.
लकीरें जो किताबों पे कमाल कर देती हैं
जमीनों पे खींचो तो हिस्से कर देती हैं
भरे फल सा दिखने वाले उस घर को ज़रा गौर से देखो
लकीरों के बाद अधूरा, बेजान और बंजर सा दिखते हैं
कभी एक ही बगीचे के फूल जैसे रहते थे हम
हर तरह के सुख और दुख बांट लेते थे हम
मज़हब जैसे कोई शब्द भी होता है पता न था, क्युकी
दिवाली के साथ ईद की नमाज भी पढ़ते थे हम
जब घुसपैठ हुई घर में तो जमकर लड़े थे हम
इन्कलाब के नारों से हर जगह गूंज...
लकीरें जो किताबों पे कमाल कर देती हैं
जमीनों पे खींचो तो हिस्से कर देती हैं
भरे फल सा दिखने वाले उस घर को ज़रा गौर से देखो
लकीरों के बाद अधूरा, बेजान और बंजर सा दिखते हैं
कभी एक ही बगीचे के फूल जैसे रहते थे हम
हर तरह के सुख और दुख बांट लेते थे हम
मज़हब जैसे कोई शब्द भी होता है पता न था, क्युकी
दिवाली के साथ ईद की नमाज भी पढ़ते थे हम
जब घुसपैठ हुई घर में तो जमकर लड़े थे हम
इन्कलाब के नारों से हर जगह गूंज...