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बन्द खिडकियाँ
रखा है किसी को उसमे।
देखो तो,ख्वाब बुन रहा है जैसे कोई ।
इस चंद अंधेरे में बरसो का चांद पोर रहा है कोई।
माना,बन्द रखा उसे दुनिया से,
देखो तो जरा,
जो अभी भी दुनियाँ की नजरे बनी,
उसे बन्द खिडकी क्या चमकने से रोकेगी।
वो बैठी है,ताक रही अपना रास्ता
चाहे,तुमने उससे मंजिल छिन ली हो।
पाकर रहेगी अपना जो भी उसका बाहर
अरे! वो तो उनको अभी नजरों में भर रही है।
इतना विश्वास है उसे,
ये खिडकीयाँ तो केवल लकडियोँ से बनी है,
क्या ही तख्तियों को उसके सामने रख रखा है बेडी बनाकर।
इतना तेज रखे हैं मन ,तुम तक ही उसे क्या बांधा है?
बांधा तो,
उसने अपना मन रखा है।
अरे!
उसकी मजबूत इतनी है ख्वाब की कश्तियाँ,
कि खडी दिवारों से रस्ता और फैली मिट्टी को अपने मस्तक लगा दे।
लगा दे अपने मस्तक पर मिट्टी,वो उसे अपना ठाठस बना देगी।
अरे!वो इन चंद तख्तियों को अपनी कहानी बता देगी।
© 🍁frame of mìnd🍁
देखो तो,ख्वाब बुन रहा है जैसे कोई ।
इस चंद अंधेरे में बरसो का चांद पोर रहा है कोई।
माना,बन्द रखा उसे दुनिया से,
देखो तो जरा,
जो अभी भी दुनियाँ की नजरे बनी,
उसे बन्द खिडकी क्या चमकने से रोकेगी।
वो बैठी है,ताक रही अपना रास्ता
चाहे,तुमने उससे मंजिल छिन ली हो।
पाकर रहेगी अपना जो भी उसका बाहर
अरे! वो तो उनको अभी नजरों में भर रही है।
इतना विश्वास है उसे,
ये खिडकीयाँ तो केवल लकडियोँ से बनी है,
क्या ही तख्तियों को उसके सामने रख रखा है बेडी बनाकर।
इतना तेज रखे हैं मन ,तुम तक ही उसे क्या बांधा है?
बांधा तो,
उसने अपना मन रखा है।
अरे!
उसकी मजबूत इतनी है ख्वाब की कश्तियाँ,
कि खडी दिवारों से रस्ता और फैली मिट्टी को अपने मस्तक लगा दे।
लगा दे अपने मस्तक पर मिट्टी,वो उसे अपना ठाठस बना देगी।
अरे!वो इन चंद तख्तियों को अपनी कहानी बता देगी।
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