बन्द खिडकियाँ
रखा है किसी को उसमे।
देखो तो,ख्वाब बुन रहा है जैसे कोई ।
इस चंद अंधेरे में बरसो का चांद पोर रहा है कोई।
माना,बन्द रखा उसे दुनिया से,
देखो तो जरा,
जो अभी भी दुनियाँ की नजरे बनी,
उसे बन्द खिडकी क्या चमकने से रोकेगी।
वो बैठी है,ताक रही अपना रास्ता
चाहे,तुमने उससे मंजिल छिन ली हो।
पाकर रहेगी अपना जो भी...
देखो तो,ख्वाब बुन रहा है जैसे कोई ।
इस चंद अंधेरे में बरसो का चांद पोर रहा है कोई।
माना,बन्द रखा उसे दुनिया से,
देखो तो जरा,
जो अभी भी दुनियाँ की नजरे बनी,
उसे बन्द खिडकी क्या चमकने से रोकेगी।
वो बैठी है,ताक रही अपना रास्ता
चाहे,तुमने उससे मंजिल छिन ली हो।
पाकर रहेगी अपना जो भी...