मुकाम
न जाने
जीवन की किस घडी में
"शाम" हो जाए
ढलता हुआ "सूरज"
कब "चाँद" हो जाए
लिखूँ अंतिम "अरदास"
अब मैं
कदमो में "उनके" !
कि बस
अपने "जनाजे" का भी
एक "मुकाम" हो जाए
© रविन्द्र "समय"
जीवन की किस घडी में
"शाम" हो जाए
ढलता हुआ "सूरज"
कब "चाँद" हो जाए
लिखूँ अंतिम "अरदास"
अब मैं
कदमो में "उनके" !
कि बस
अपने "जनाजे" का भी
एक "मुकाम" हो जाए
© रविन्द्र "समय"
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