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ओ पगला मुझसे फौजी बन टकराया था
वो कॉलेज की आखिरी क्लास और थकी थकायी शाम थी
सूरज भी डूबने वाला और मन में मेरे चंचलता भी आई थी
वो साइकिल के पैडल औऱ आँखों में सपना से सुंदर आया था
वो पगला मुझसे फ़ौजी बनकर टकराया था!!!!!!
उसे जाना था किसी के घर पर बन मेहमान और
मेरे दिल के ऑंगन में जाने क्यों वो चलकर आया था
लिए एड्रेस पर्ची पर उसने धीरे से कहकर पुचकारा था
नज़रे मिली उससे और मन मंद मंद मुस्काया था
ओ पागला मुझसे फौजी बन टकराया था!!!!!!!
मेरे साथ चला पहली बार मेरा पड़ोसी बनकर आया था
सुबह सबेरे उससे मेरी नजरें यूँ ही टकराया करती थी
आते जाते हौले हौले मुझसे कुछ कह जाया करती थी
उस शांत स्वभाव से परिचय का परचम लहराया था
हम दोस्त बनें फिर प्यार हुआ और उसने धीरे धीरे
मेरी बंजर मन की धरती पर प्यार का पौधा लहराया था
वो पागला मुझसे फौजी बनकर टकराया था!!!!
ओ फौजी था चाँद तारों की बातों में कभी ना आया था
उसने सरहद की बातों को ही प्रेम कहानी बातया था
उन दिल्ली की सड़कों पर मुझे चाय समोसे खिलाया था
हौले हौले उसने मुझको अपने दोस्तों की भाभी बनाया था
ओ पगला मुझसे फौजी बनकर टकराया था!!!!!
यूँ प्यार हुआ तकरार हुआ और ओ मौसम भी आया था
उसने बड़े अदब से मुझको अपने माँ पापा से मिलाया था
ढेरों खुशियाँ चढ़ी हुई थी मेरा ऐसा भी जीवन आया था
और वक़्त ने देखो हम दोनों को प्रेमी से मंगेतर बनवाया था
वो पगला मुझसे फौजी बनकर टकराया था!!!!!!!
ओ कॉलेज वालो ने भी मुझे फौजन फौजन खूब चिढ़ाया था
उसके आलिंगन में मैं ठीक से खुद को देख ना पाई
उसके वापस जाने का अब समय भी लौट आया था
देकर आशीर्वाद सबने विदा किया यूँ अलविदा...