मेरी सब सखियां
मेरी सब सखियां
मेरी सब सखियां
चाय की माफिक कड़क है
पक पक कर स्वादिष्ट हो गई
जिंदगी जीने में माहिर हो गई
दूध बनकर ससुराल आयी थी
अदरक की तरह कूटी गई
वो अपनी चीनी मिलाती रही
और तजुर्बा की आंच
मे खुद को पकाती रही
और आज देखो सब
मजे से घर चलाती हैं
और अपना भी दिल बहलाती है
चालीस के पार होकर भी...
मेरी सब सखियां
चाय की माफिक कड़क है
पक पक कर स्वादिष्ट हो गई
जिंदगी जीने में माहिर हो गई
दूध बनकर ससुराल आयी थी
अदरक की तरह कूटी गई
वो अपनी चीनी मिलाती रही
और तजुर्बा की आंच
मे खुद को पकाती रही
और आज देखो सब
मजे से घर चलाती हैं
और अपना भी दिल बहलाती है
चालीस के पार होकर भी...