...

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ख्वाब
रात के 3 बज रहे हैं
मैं और मेरा मन इस अंजान शहर में अकेले..रात के अंधेरों में दूर देखने की कोशिश कर रहे हैं।
लाखों खयाल आ रहे हैं मन में,
एक ख्वाब, फिर एक और ,फिर एक क़िस्सा

यही ख्वाब मुझे सालों पहले भी आता था,
आज भी, क्या मैं वही हूँ, क्या कुछ नहीं बदली?
या मेरी ज़िंदगी में खुशियाँ कहीं खो गईं,
बस सिसकियाँ हैं, जो हर रात मुझको...