...

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जीता हूँ एक रणछोड़ सा

तू निकली चंचल पतंग सी,
मैंने रह गया कटी डोर सा,
तू बह निकली नदी के धार में,
मैं देखता रह गया किसी छोर सा।
मुझसे आज दूर है तू पर,
मेरी नजरों से कतई नहीं,
आज भी ताकता राह तेरी,
किसी बेबस चित चोर सा।
क्या जिक्रे फ़िराक हो आज,
मेरी इस...