धिक्कार है ऐसे यौवन पे
धिक्कार है ऐसे यौवन पे, डरता हूं मैं जवानी से।
हास्य पात्र है ये पौरुष,निर्मूल मेरी कहानी है।।
किस गुण पे मैं करूं अहं,उपलब्धि कौन गिनाऊं मै।
धर्म, जाति, कुल,गोत्र क्या मेरा,कह ये सब शोर मचाऊं मैं।।
मुफ़्त ही पाई आज़ादी, तो त्याग का जानू क्या पर्याय।
रीढ़ की हड्डी न सीधी,तभी भरी जवानी हाय–हाय।।
क्या अधिकार,कैसे विचार,जीवन की धार का पता नहीं।
बैठे लाचार,अंदर विकार,सदाचार कभी चला नहीं।।
...
हास्य पात्र है ये पौरुष,निर्मूल मेरी कहानी है।।
किस गुण पे मैं करूं अहं,उपलब्धि कौन गिनाऊं मै।
धर्म, जाति, कुल,गोत्र क्या मेरा,कह ये सब शोर मचाऊं मैं।।
मुफ़्त ही पाई आज़ादी, तो त्याग का जानू क्या पर्याय।
रीढ़ की हड्डी न सीधी,तभी भरी जवानी हाय–हाय।।
क्या अधिकार,कैसे विचार,जीवन की धार का पता नहीं।
बैठे लाचार,अंदर विकार,सदाचार कभी चला नहीं।।
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