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मेरे दादी का सत्संग वाला प्रेम
जिन्दगी से आज भी दादी मां भीख मांग रही हैं।
बस एक एक अरसा जोड़ो हुए बैठी हुई है।
आज भी राम के नाम का माला जप करती हैं।
मुझे कुछ और वक्त चाहिए मेरे परिवार के खातिर के लिए।
अगाध प्रेम उनसे समर्पण के लिए आज भी पूछा करता है।
मेरे प्रेम का बंधन में बंधे बाल्कन सारी खुशियों को सत्संग में गुजार देते है।
अब मैं क्या करूं मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं मेरी प्यारी दादी मां के लिए।
जिससे इस समर्पण का भाव मन में पैदा ही न हो।
कोई मौसम भी बीच नही आना चाहता है क्योंकि जीवन सत्संग और राम के जप में जो हैं।
उसका कहना ठंडी और गर्मी मौसम के चुटकुले हैं
जो हमेशा अपने समय पर बाहें फैलाये रहते हैं।
जो उनके जीवन के लिए मर्मज्ञ हैं। और सुखदायी भी हैं।
© genuinepankaj