...

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अनकही बातें
बड़े ही पशोपेश में था वह शख्स
न जाने किस खोज में था वह शख्स।

अजीब सी उलझनों में जकड़ा हुआ था
भीड़ में भी अकेला खड़ा हुआ था।

कुछ खोने के डर से सहमा- सहमा सा था
जो है हासिल उससे बेखबर सा था।

हजारों सवालों को आंखों में बसाया हुआ था
रोशनी में भी अंधेरे की साया में वह था।

न जाने किस नांव में सवार वह था
किनारे में रहकर भी मझधार के भंवर में था।

लबों को हिलाकर भी बेबाक सा था
खुले पलकों मे भी आंखें मूंदे हुए था।

एक नशे की गिरफ्त में खोया-खोया सा था
कुछ तो था जिससे वो मर्माघात था।