...

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प्यार वह नशा है
प्यार वो नशा है जो डूब जाए इसमें ,फिर वह कहां अपना रहा है।
प्यार में फिर वह पागल आशिक,आवारा बनके ही घूमता रहा है।

प्यार वो नशा है जिसका रंग एक बार चढ़ा,फिर उतरा ही नहीं है।
प्यार में कोई ऐसा ही नहीं ,जो अपने प्यार के लिए रोया नहीं है।

प्यार का नशा ही ऐसा होता है ,कभी तो लागे अमृत सा मीठा है।
कभी कभी तो लागे,की यह ज़हरीले विष के समान ही कड़वा है।

जिस को भी मिला है सच्चा प्यार, वो तो प्यार में आबाद हुआ है।
पर जिस को मिला है प्यार में धोखा,वो तो प्यार में बर्बाद हुआ है।

आज के दौर में प्यार ,प्यार ना होकर बस एक व्यापार हो गया है।
रूहानी मोहब्बत ना होकर ,अब तो बनकर जिस्मानी रह गया है।