...

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वृद्ध वट और नई पौध
मैं मालिन.....
क्यारी, फुलवारी, बगीचा, हौद;
एक घना बरगद, और एक नन्ही पौध।
मांगा जिसे मन्नतों में,
मिली जो मुझे जन्नतों से;
लहलहाया था वटवृक्ष पल पल
अंकुर में जब फूटी थी कोपल।
कितने पतझड़, कितने सावन,
कुछ दुख दर्द, कुछ सुख मनभावन।
बाँटे सब आधे बैठ उस वट की गोद;
पास ही खिलखिलाई वो नन्ही पौध।
धरती की पेशानी चूमती हवाई जड़ें
जिससे लटक लिए थे कभी झोंके बड़े।
आंधी तूफान में खाए कितने थपेड़े,
मेढ़ लगा नई पौध संग थे बड़ तले खड़े।
सावन में पत्ते चमके, पतझड़ में गिरे;
कड़कती धूप में दी छाँव पाला सारा गांव।
सींचा, सहेजा पूरा बागान...
मैं मालिन, मेरा काम बागबान..
इसमें हैं वो पौध और वो बरगद महान;
न कोई इनसा प्यारा, खोज आई सारा उद्यान।
धूप सेंकता खड़ा बरगद
बढ़ रहा पौध का भी कद;
बड़ चाहे करके देना हर काम आसान;
पौध को तो चाहिए खुद का आसमान।
ये मालिन अब हो रही विभाजित;
वृद्ध वट अपनी जगह , पर पौध उपेक्षित;
जंगली घास सी बढ़ती, खो रही मासूमियत
कैसे रखूं बाग पुष्पित, पल्लवित, सुसज्जित?
बूढ़े बड़ के हैं संघर्ष बाकी,
नन्ही कली के सपने संजोने बाकी;
इन नम पलकों का है हँसना बाकी,
कुछ सौगाते, कुछ कर्ज़ हैं बाकी।
यूं तो बिखरने को ढेरों हैं विकल्प;
मन में है सँवरने का दृढ संकल्प।
कशमकश बढ़ा रहा भीतर का कलह;
क्या करूं कि बैठा पाऊं जीवन में सामंजस्य?
मैं मालिन.....
"लीना"❤️