...

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कहीं तो मिलेंगे
इस जहाँ मे ना सही
उस जहाँ मे तो कहीं मिलेंगे

ये जिस्मों से जुड़े नाते तोड़ कर
रूह के रास्ते कहीं तो जुड़ेंगे

कौन रखता है इश्क़ का हिसाब यहाँ
उस जहाँ मे तो बेहिसाब मिलेंगे

तुझ सा और कोई हो ये मुमकिन नहीं
तेरी महोब्बत मे हम कहीं तो खिलेंगे

ना मैं कोई वादा करू ना तुम कोई कसम खाना
हिज्र मे कटी रातें तो दिन के उजाले कहीं तो मिलेंगे

ना तारों की ख्वाहिश ना चाँद की दरख्वास्त
जन्नत से भी परे कभी ना कभी जरूर मिलेंगे
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