4 views
हसीन मंडी
शोहरत की हसीन मंडी,
बना दे इंसान को देख घमंडी।
कर रिश्तों का कत्लेआम,
घूमे लगाये मुखौटे खुलेआम।
चंद क्षण की हो प्रतिष्ठा,
भुलाये मनुष्य को मगर निष्ठा।
हो के क्षोभ के वशीभूत,
करे बुरे कर्म हो शून्य फलीभूत।
रक्त संबंधों को लताड़े,
बढ़ाये अक्सर बिन बात झगड़े।
देता केवल तिलांजली,
उड़ाये है अपनत्व फिर खिल्ली।
मत कभी यह भूलना,
दौलत के ढेर पे बैठके न हंसना।
करती युगों से ये छल,
आज है,जरूरी नहीं होगी कल।
© Navneet Gill
बना दे इंसान को देख घमंडी।
कर रिश्तों का कत्लेआम,
घूमे लगाये मुखौटे खुलेआम।
चंद क्षण की हो प्रतिष्ठा,
भुलाये मनुष्य को मगर निष्ठा।
हो के क्षोभ के वशीभूत,
करे बुरे कर्म हो शून्य फलीभूत।
रक्त संबंधों को लताड़े,
बढ़ाये अक्सर बिन बात झगड़े।
देता केवल तिलांजली,
उड़ाये है अपनत्व फिर खिल्ली।
मत कभी यह भूलना,
दौलत के ढेर पे बैठके न हंसना।
करती युगों से ये छल,
आज है,जरूरी नहीं होगी कल।
© Navneet Gill
Related Stories
10 Likes
4
Comments
10 Likes
4
Comments