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tum ek khwab
सुब्ह का आफताब लगती हो
तुम मुझे इक गुलाब लगती हो

कितनी प्यारी हो ये हिसाब नहीं
बस ये है बेहिसाब लगती हो

छांव लगती हो धूप में आकर
और प्यासे को आब लगती हो

चांद लगती हो जैसे पूनम का
चांदनी का शबाब लगती हो

जैसे मैं हूं गरीब मयकश, तुम
कोई महंगी शराब लगती हो

मैं मुसलमान होता तो कहता
पाक सी इक किताब लगती हो

तुम हकीकत हो या हो सच्चाई
यार मुझको तो ख्वाब लगती हो
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