...

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ख्वाब
ख्वाबो के परिंदे की ऊंची उड़ान ,
दिल मे रहता जैसे कोई करीबी मेहमान
ख्वाबो की भी अपनी पहचान
छोड़ जाता है ,ये कुछ ऐसे निशान
एक तरफा महोब्बत कर जाता है ये
जीने का साहारा दे जाता है ये
रातो का मुसाफिर है ,ये ख्वाब हमारा
आज़ादी के साथ जीता- चला जाता ये बिचारा
अधूरी सी बातें करता है ये
कुछ न कह कर भी सब कह जाता है ये
राज़ बाते है इसकी
गेरो को समझ न आये
फिर भी ये हमसे
रोज़ रातो को मिलने आए
अधूरे चाँद जैसा खुसबसूरत है वो
सुकून उसमे ऐसा जैसे ठहरी झील हो वो
सपनो में रहते–रहते ख्वाब देखना सिखा गया
न जाने कब वो हमे ज़िन्दगी की सच्चाई बता गया
इस ख्वाब से उठना नही चाहते थे हम
जुठ में ही सही मगर इसे जीना चाहते है हम
इन्हें बेवजह देखते-देखते
इनसे बाते करते रहना चाहते थे हम।



© Dark Rose