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गुजरे दिन...
फुर्सत ही कहां अब किसी को,
जो हमारा जिकर करे।
करवट ले चुका वक्त यहां,
क्या कोई फिकर करे।।
सोचता हूं कि भूल मेरी क्या थी?,
जो, लोग मुझे यूं भूल गए।
वाकई क्या मैं इतना बुरा हूं?,
जो,लोग गूलर के फूल भए।।
पहले तो लोग ऐसे न थे,
हर तरफ प्यार बस प्यारे से हम थे।
दो क्या चार गुना खुशियां थीं,
चमकते चेहरे लेकिन नजारे गम के कम थे।।
आखिर कुछ पल में क्या हुआ,
जो यूं सब बदल गया।
हांकने को तो लोग लंबी हांकते थे,
शायद वो वक्त अब निकल गया।।।
written by(संतोष वर्मा)
आजमगढ़ वाले खुद की जुबानी..
जो हमारा जिकर करे।
करवट ले चुका वक्त यहां,
क्या कोई फिकर करे।।
सोचता हूं कि भूल मेरी क्या थी?,
जो, लोग मुझे यूं भूल गए।
वाकई क्या मैं इतना बुरा हूं?,
जो,लोग गूलर के फूल भए।।
पहले तो लोग ऐसे न थे,
हर तरफ प्यार बस प्यारे से हम थे।
दो क्या चार गुना खुशियां थीं,
चमकते चेहरे लेकिन नजारे गम के कम थे।।
आखिर कुछ पल में क्या हुआ,
जो यूं सब बदल गया।
हांकने को तो लोग लंबी हांकते थे,
शायद वो वक्त अब निकल गया।।।
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आजमगढ़ वाले खुद की जुबानी..
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