...

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मेरी जिंदगी
मेरी जिंदगी मुझे एक
बेजान खिलौना समझ
तोड़ मरोड़ रही है ....
शायद वो मुझ से खेल
रही है ...........
मै रोशन होना चाहती
हूं किसी जुगनू की तरह
ना जाने फिर क्यू?
वो मुझे अंधेरे में धकेल
रही है ........

मेरी जिंदगी मुझ से
खेल रही है ........

हर पल मुझे ये आजमाती है
समझ नही आता कभी कभी
की आखिर ये मुझ से क्या?
चाहती है .........

शायद चाहती है ये मुझे
एक कठपुतली समझ अपने
इशारों पर नचाना ....…
हंसना , रोना सब हो इसके
हिसाब से .......

पर आखिर ये जिंदगी मेरी है
तो फिर जिंदगी तू ही बता
आख़िर मै क्यू? चलू तेरे
हिसाब से ? ।



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