...

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यदि जो मैं एक माँ होती।
यदि मैं एक माँ होती..
तो सबसे पहली शिक्षा जो मैं मेरे बच्चे को देती...
वह होती...
'संवेदनशीलता'
और दूसरी होतीं...
'स्वीकार'...
बस बात खतम!
बाकी जो भी सीखने की ज़रूरत हैं
व्यक्ति स्वयम सीख लेता...
हर व्यक्ति का गुरु
उसके भीतर ही मौजूद होता हैं...
हमें महज़
उसे उसके
भीतर के गुरु से
connect करने की ज़रूरत भर होती हैं...
बाहर के गुरु की ज़रूरत व्यक्ति को
तभी पड़ती हैं
जब व्यक्ति
अपने भीतर के गुरु से connect नहीं हो पाता...
गुरु का काम और कुछ नहीं होता..
आपको आपके भीतर के ही गुरु से मिलाना होता हैं...
कोई गुरु
कोई प्रभु
आपको तार नहीं सकता
यदि आपके भीतर का गुरु
भीतर का प्रभु जागा हुआ नहीं हैं तो...
आप स्वयम ही स्वयम को तारते हैं
गुरु महज़ आपको
जगाने की कोशिश भर करता हैं
वह भी यदि आप जागने को तैयार हैं
आईना दिखाने की कोशिश भर करता
हैं
गुरु!
वह भी यदि आप देखने को तैयार हैं तो...
वरना लाख संभावना भी छुपी हो ना तुम मे..
कोई गुरु कुछ नहीं कर सकता..
आपका झुकना..
आपके भीतर के गुरु का उठना हैं 🙂!!!
और संवेदंशीलता और स्वीकार.. !!
इन्ही दो के बीजों में से जनम लेता हैं
'सजगता' और
'समर्पण' भाव..
जो जीवन की महत्वपूर्ण कड़ी हैं!
जिससे जीवन रूपी वृक्ष निर्मित होता हैं...
उसी बीज के गुणों वाले!
और अनंत फ़ल देता जाता हैं..
खैर यह तो प्राकृतिक घटना हैं
आपके प्रयत्न के परिणाम की...
किंतु..
देश,धर्म और मेरे मध्य तुम्हें..
यदि तुम्हें किसी एक को चुनना पड़े...
तो तुम सदेव जगत के प्रति अपने धर्म को चुनना..
जगत के प्रति अपने दायित्व को चुनना...
तुम में बोए
मेरे प्रेम के बीज
तभी सफ़ल होंगे
जब तुम इन्हें जगत की भूमि में
multiply करते चले जाओगे..
मैं कभी नहीं चाहूँगी...
मेरा दिया प्रेम तुम्हें तुम्हारा
मुझी तक सीमित रह जाए...
यदि जो मैं माँ होती
तो मेरे बच्चों को मैं यही तीसरी शिक्षा देती।
बाकी जगत से वे स्वयम सिख लेतें...
मैं strong headed बच्चे नहीं..
strong hearted beings निर्मित करने की
कोशिश करती...
मैं कभी नहीं चाहती
की मेरा बच्चा मेरी हर बात मानें
मैं चाहती
यदि मैं भी यदि कहीं गलत हूँ..
तो वह मुझे मेरी गलती बताने का साहस रखे..
चौथी शिक्षा ...मेरी यही होती.. !
क्यों नहीं..
आपके बच्चे के भीतर भी तो एक गुरु हैं
शायद आपसे अधिक पहुँचा हुआ गुरु हो..
उनसे भी तो सिखा जा ही सकता हैं।
आयु !
किसी की अवस्था का मापदंड नहीं होती!
मैं कभी नहीं चाहती
के मेरे बच्चा मुझसे कहे आके
के my mummy is the best mummy in the world..
पहली तो
मैं best होना ही नहीं चाहती।
दूसरी
ना ही अपने ego को boost देना चाहती हूँ
माँ रूप में भी!
हाँ माँ रूप में भी.. !!
माँ का भी अपना अहंकार होता हैं।
किंतु मैं महज़ अपना best देना चाहती,
अपनी संतान को..
और जगत को
अपने संतान रूप में भेट देना चाहती
मोह नहीं
उन्हें प्रेम सिखाती। 🙂
और सम्मान मेरे लिए महज़ नहीं
जगत की प्रत्येक माँ के प्रति हो..
महज़ माँ नहीं
प्रत्येक स्त्री के प्रति हो
क्योंकि स्त्री गहरे में
स्वभाव से माँ ही होती हैं..
महज़ समान्य स्त्री ही नहीं...
वैश्या रूप मे भी यदि कोई स्त्री हैं..
तो उसका भी उतना ही सम्मान हो...
क्योंकि भीतर गहरे में
एक वैश्या भी माँ ही हैं..
महज़ अबोध ज़िंदगी की मार
अथवा प्रेम का अभाव... !
हाँ जीवन की मार
अथवा..
प्रेम का का अभाव ही
एक स्त्री को वैश्या बना सकता हैं
प्रेम के स्पर्श भर से एक स्त्री 'माँ' रूप धर लेती हैं...
चाहे कोई हो...
एक स्त्री यदि प्राकृतिक रूप से स्त्री हैं
यह उसके लिए बड़ी अप्राकृतिक सी और बहुत असहज घटना हैं...
के वह जिसे प्रेम करती हैं
अथवा जिसके प्रति वह समर्पित हैं
उसके अलावा किसी को ख़ुद को छूने भी दे
यह एक स्त्री के जीवन में स्वभाविक घटना नहीं हो सकती।
सहज घटना नहीं...
स्त्री यदि प्राकृतिक रूप से अभी भी स्त्री हैं
तो वह प्रेम और समर्पण का जीता जागता स्वरूप हैं!!
समर्पण, प्रेम, त्याग, तपस्या यही एक स्त्री का जीवन हैं।
और यही कारण हैं
स्त्री का जनम ही बड़ा आध्यात्मिक हैं..
स्त्री जनम से ही आध्यात्मिक यात्रा पर ही हैं
वह संसार छोड़े ना छोड़े उसका जीवन आध्यात्मिक ही हैं।
जो पुरुष अपने भीतर से ज़रा सा भी संपर्क साधेगा
वह इस सत्य को जान पाएगा..
बाहर की स्त्री से दुरतव
और कुछ नहीं...
पुरुष का
अपने भीतर की स्त्री से दूरी का
ही परिणाम हैं..
यदि जो मैं कभी मैं माँ होती। 🙂
महज़ इतनी ही चंद शिक्छा
मैं अपने बच्चे को देती
इसके अलावा
उसके गुणों को मैं आपो आप खुलने देती
ज्यों बग़ियाँ में परियाप्त खाद
और
उपयुक्त पर्यावरण मिलने पर
स्वतः सहज
ज्यों एक फूल खिलता हैं
आपो आप... !
माली का काम महज़..
बुआई, गुड़ाई
खाद-पानी
उपलब्ध कराना होता हैं..
बाकी पर्याप्त सौर्य ऊर्जा!
अस्तित्व प्रदान कर ही देता हैं..
महज़ इतनी ही अभिलाषा थी
यदि जो मैं माँ होती 🙂..

क्योंकि 18 वर्ष तक ही
एक बच्चा
माँ का बच्चा रहता हैं
उसके बाद वह जो करता हैं
उससे जगत प्रभावित होता हैं..
पुरा जगत प्रभावित होता हैं!

भला तो भला..
बुरा तो बुरा...

वह जिस जीवन मे जाता हैं
वह जीवन प्रभावित होता हैं!

18 वर्ष के बाद कोई बच्चा
माँ का नहीं रह जाता!
संसार का हो जाता हैं...
जगत- जीवन का हो जाता हैं।
जगत में सारे सुकर्म
और सारे दुष्कर्म करने वाले सभी..
किसी माँ की हीं संताने हैं...
अंधकार फेलाने वाला भी
और प्रकाश फेलाने वाला भी!
किसी ना किसी माँ की ही संतान हैं!
मैं अपने बच्चे को कभी ऐसा प्यार नहीं देती..
जो संसार के लिए विष बन जाए...
ज़हर बन जाए..
मैं यदि जो जनम देती किसी को
मेरी कोशिश यही होती..
जिसे मैं अपना गर्व दूँ
वह संसार के लिए अमृत बन जाए..
यदि जो मैं माँ होती 🙂...।
इतनी ही मेरी अभिलाषा होती। 🙂






(और यही हर माता की भी मैं ज़िम्मेदारी समझती हूँ
महज़ बच्चे को जनम दे देना
आज लाड प्यार देना
अथवा
कल उसे अपने investment banking की तरह use करना...
यह मातृत्व का धर्म नहीं हैं... गुण नहीं!
माँ पर इस जगत में बहुत बड़ा दायित्व हैं
अस्तित्व का बहुत बड़ा भार हैं..
एक जीवन को जनम देना..
और उसे सही माइने में एक इंसान बनाना..
यह एक माँ का धर्म हैं.. ।
और एक माँ चाहें तो क्या नहीं कर सकती
युही तो अस्तित्व सारा माँ के आगे नकमस्तक नहीं होता।

ममता रूपी प्यार की आड़ में
वह एक सुंदर इंसान निर्मित कर सकती हैं
संसार में। )
✍️ 9.45am
4.3.2024
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PT
9.13pm
4.3.2024

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#woman a #motherlybeing

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