कभी तो.....
कभी आंखें तेरी भी तो नम हुईं होंगी
ज़ख्मी ये भी कहां कम हुई होंगी
कभी तो अँधेरा चीर कर गया होगा
कभी तो रोशनी तेरी भी कम हुई होगी
रास्ते कहाँ तुझे भी सब सीधे मिले होंगे
मंज़िलें अक्सर तेरी भी तो कुछ कम हुई होंगी
भी़ड में भी सफ़र अकेला
चाँद से बातें तुम्हारी भी कहाँ कम हुई होंगी
कांच सी बिखरी होगी जब रूह तुम्हारी
सिसकियाँ अक्सर गले तक आकर एकदम चुप रह रही होंगी
कहीं तो लिखा है मेल हमारा
यूं ही तो नहीं हवाएं आंखमिचोली खेल रही होंगी...
© Gauri_🎶
ज़ख्मी ये भी कहां कम हुई होंगी
कभी तो अँधेरा चीर कर गया होगा
कभी तो रोशनी तेरी भी कम हुई होगी
रास्ते कहाँ तुझे भी सब सीधे मिले होंगे
मंज़िलें अक्सर तेरी भी तो कुछ कम हुई होंगी
भी़ड में भी सफ़र अकेला
चाँद से बातें तुम्हारी भी कहाँ कम हुई होंगी
कांच सी बिखरी होगी जब रूह तुम्हारी
सिसकियाँ अक्सर गले तक आकर एकदम चुप रह रही होंगी
कहीं तो लिखा है मेल हमारा
यूं ही तो नहीं हवाएं आंखमिचोली खेल रही होंगी...
© Gauri_🎶