...

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"ग़र मुश्किलें आएँ"
"जीते हैं रोज लोग यहाँ, अक्सर मर-मर के,
और मरते हैं हर रोज, सिर्फ़ जीने के लिए,

ग़र मुश्किलें आएँ, जीवन में इस क़दर,
जीना भी दूभर हो जाए, कुछ पलों के लिए,
तो मिलना मुश्किलों से, थोड़ा मुस्कराते हुए,
आती हैं ये जीवन में, मुश्किल हलोें के लिए,

आसाँ नहीं हैं रास्ते ये, मंजिलों के ए दोस्त,
पार वही पाया यहाँ, जिसने साहस कर लिए,
कई बार गिरते हैं, शायद संभलने के लिए,
और संभलते हैं ऐसे, ज़िंदगी बदलने के लिए,

ज़िंदगी तो कटनी है, कट जायेगी आख़िर,
बाद ज़िंदगी के कहे कोई, वाह! क्या काम किए,"


ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination