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भोपाल गैस त्रासदी-एक अविस्मरणीय दर्द
जब नींद सुकून की आ रही थी,
नई उम्मीद कोई जग रही थी,
आंख खुलेगी जब सुबह के संग,
निकलेंगे अपनी जरूरतों को पूरा करने हम,
शाम ढ़लते ही जब घर को आ जाये,
बैठ मिलकर परिवार संग खाये,
ख्वाब लेके नींदों में कल का,
सो गया मजदूर वो मन का,
शांत रात वो सुकून भरी,
जिसमें प्राणवायु थी, पर
मध्यरात्रि का वो पहर, जो
मौत बनकर आयी थी,
कोई दुआ कबूल ना हुई उस दिन,
टैंक से गैस रिस रही थी जिस दिन,
उम्मीदों की दौड़ थी पग-पग में,
जहर घुलने को बेताब था रग-रग में,
मौत के राग ने जब मिलाया ताल,
सायनाइड के आगोश में सो गया भोपाल,
जहां-जहां था मौत का मुकाम,
वहां-वहां बना शहर श्मसान,
बचते-बचाते मौत से खुद को,
टूट गया जिनसे अपनो का धागा,
जीत गए जो मौत की दौड़ से,
मान रहे थे खुद को अभागा,
किसकी थी ये जिम्मेदारी, कौन था जिम्मेदार,
जख्म अभी भी ताज़ा है उनके,
जिन्होंने खोया अपना घर-परिवार
शब्द नही जिस दर्द को बयां करने को,
स-सम्मान श्रद्धांजलि अर्पित,
उसे महसूस करने वालों को।

Do you still remember?;
on this day, 35 years ago 35 tonnes of methyl isocyanate was leaked for the union carbide factory in Bhopal. 6197 people died 8000+ affected and 2000+ animals were dird. May the all mighty give them rest in peace .
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