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भोपाल गैस त्रासदी-एक अविस्मरणीय दर्द
जब नींद सुकून की आ रही थी,
नई उम्मीद कोई जग रही थी,
आंख खुलेगी जब सुबह के संग,
निकलेंगे अपनी जरूरतों को पूरा करने हम,
शाम ढ़लते ही जब घर को आ जाये,
बैठ मिलकर परिवार संग खाये,
ख्वाब लेके नींदों में कल का,
सो गया मजदूर वो मन का,
शांत रात वो सुकून भरी,
जिसमें प्राणवायु थी, पर
मध्यरात्रि का वो पहर, जो
मौत बनकर आयी थी,
कोई दुआ कबूल ना हुई उस दिन,
टैंक से गैस रिस रही थी जिस दिन,...